अहसास
“हेलो , तुम्हें काम तो याद है ना,” मधुरिमा ने कहा.
उधर फोन पर मुकेश की आवाज आई , “कौन – सा काम ?”
मधुरिमा ने कहा, “अरे! मैं कितने दिनों से कह रही हूँ पर तुम हो कि वह काम करते ही नहीं .आज शाम को जब मैं कार्यालय से घर पहुँचू तो मेरा काम हुआ होना चाहिए।”
“नहीं, नहीं, मुझसे नहीं होगा मधुरिमा!” मुकेश ने कहा.
“मैं कुछ सुनना नहीं चाहती. काम करके रखना.” यह कहकर मधुरिमा ने फ़ोन रख दिया.
शाम को जब मधुरिमा घर पहुँची तो उसने मुकेश से पूछा, “मेरा काम हुआ?”
“मुझे समय नहीं मिला, मधुरिमा ,” मुकेश ने कहा .
मधुरिमा ने कहा, “आज कोई बहाना नहीं चलेगा. आज तुमसे करवा कर ही रहूँगी.”
“अच्छा बाबा ठीक है. रात तक कर दूँगा.”मुकेश ने कहा .
इधर- उधर के काम निपटाते हुए समय बीत गया. रात के दस बज रहे थे . मुकेश ने एक कागज़ निकाला, उसे देखा , फिर अपनी जेब में रख लिया. अचानक मधुरिमा की निगाह उस कागज़ पर पड़ी.
“इसमें क्या है?” मधुरिमा ने पूछा.
“अरे! कुछ नहीं छोड़ो।“ मुकेश ने कहा.
“नहीं, नहीं, मुझे यह कागज दो.” मधुरिमा ने कहते हुए कागज उससे ले लिया . मधुरिमा ने उस कागज को देखा. मुस्कराकर फिर सोफे पर जाकर बैठ गई. उसमें लिखा था-
मधुरिमा , मैंने तुम्हें पहली झलक में ही पसंद कर लिया था. कुछ बोलने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था क्योंकि तुम उस समय कालेज की पढ़ाई कर रही थी . कई बार मुलाकात भी हुई. तुम्हें तो पता ही है कि मैं तुमसे बात करने में कितना झिझकता था . पता नहीं फिर जाने कैसे मैं बिजी हो गया और तुम भी खो- सी गई. कभी- कभी संपर्क करने की कोशिश करने की इच्छा भी हुई, पर किसी कारण से मिलना नहीं हो पाया. चार साल बाद बाद न जाने कहाँ से कोई तुम्हारे लिए रिश्ता ले कर आया और मैं तो ख़ुशी से झूम उठा. मैंने तुरंत हामी भर दी और हमारी शादी हो गई. इस शादी को कितने वर्ष हो गए. मधुरिमा, बच्चों के होने के बाद तो बस हम दोनों का एक मात्र उद्देश्य उनकी अच्छी परवरिश ही रह गया था. हमारे बीच तो बस बच्चों ओर घर की बातें ही होती रहीं , पास रहकर भी हम किसी न किसी उलझन में फँसे रहे और जीवन की आपा- धापी में अजनबी से बन गए. तुमने किस प्रकार मेरे साथ इतने वर्ष बिता दिए, कुछ पता ही नहीं चला. हर कदम पर तुम मेरे साथ खड़ी रही. कई बार ऐसे मौके आए जब तुमने मुझे सहारा दिया. आज जब तुमने कहा कि मैं तुम्हें पत्र लिखूँ तो मुझे समझ नहीं आया मैं कहाँ से शुरू करूँ . इतनी बातें, इतनी ढेर बातें जो एक पति-पत्नी में हो जाती हैं , कहाँ से इस पत्र में समेट दूँ ! बस मैं यही कहना चाहता हूँ कि तुमने सुख और दुख की घड़ियों में मेरा सुंदर साथ निभाया , जब जब मैं टूटा, तुमने मुझे सहारा दिया.हम दोनों ने परिवार को अच्छे से मिल कर बनाया . ईश्वर से यही प्रार्थना है कि हम यूँ ही मिलकर जीवन के बाकी वर्ष बिताएँ .
तुम्हारा,
मुकेश
मधुरिमा पत्र पढ़ते-पढ़ते रोने लगी. उसकी आँखों में खुशी के आँसू थे .मुकेश कभी मुँह से अपनी बात नहीं कहता था, लेकिन हर छोटी- बड़ी बातों में उसका प्यार झलक जाता था .आज सुबह ही वह मुकेश को यह काम बताकर आई थी और चाहती थी कि वह उसे पत्र लिखे.उसके काफी ज़िद करने पर मुकेश ने उसे यह पहला पत्र लिखा था.
तभी मुकेश भी उसके पास आकर बैठ गया और उसने प्यार से मधुरिमा को अपने पास खींच लिया। उसके स्पर्श का यह अहसास ही मधुरिमा को बीते वर्षों की सुखद याद दिलाने के लिए काफी था.
उषा छाबड़ा
२४.२.१६
“हेलो , तुम्हें काम तो याद है ना,” मधुरिमा ने कहा.
उधर फोन पर मुकेश की आवाज आई , “कौन – सा काम ?”
मधुरिमा ने कहा, “अरे! मैं कितने दिनों से कह रही हूँ पर तुम हो कि वह काम करते ही नहीं .आज शाम को जब मैं कार्यालय से घर पहुँचू तो मेरा काम हुआ होना चाहिए।”
“नहीं, नहीं, मुझसे नहीं होगा मधुरिमा!” मुकेश ने कहा.
“मैं कुछ सुनना नहीं चाहती. काम करके रखना.” यह कहकर मधुरिमा ने फ़ोन रख दिया.
शाम को जब मधुरिमा घर पहुँची तो उसने मुकेश से पूछा, “मेरा काम हुआ?”
“मुझे समय नहीं मिला, मधुरिमा ,” मुकेश ने कहा .
मधुरिमा ने कहा, “आज कोई बहाना नहीं चलेगा. आज तुमसे करवा कर ही रहूँगी.”
“अच्छा बाबा ठीक है. रात तक कर दूँगा.”मुकेश ने कहा .
इधर- उधर के काम निपटाते हुए समय बीत गया. रात के दस बज रहे थे . मुकेश ने एक कागज़ निकाला, उसे देखा , फिर अपनी जेब में रख लिया. अचानक मधुरिमा की निगाह उस कागज़ पर पड़ी.
“इसमें क्या है?” मधुरिमा ने पूछा.
“अरे! कुछ नहीं छोड़ो।“ मुकेश ने कहा.
“नहीं, नहीं, मुझे यह कागज दो.” मधुरिमा ने कहते हुए कागज उससे ले लिया . मधुरिमा ने उस कागज को देखा. मुस्कराकर फिर सोफे पर जाकर बैठ गई. उसमें लिखा था-
मधुरिमा , मैंने तुम्हें पहली झलक में ही पसंद कर लिया था. कुछ बोलने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था क्योंकि तुम उस समय कालेज की पढ़ाई कर रही थी . कई बार मुलाकात भी हुई. तुम्हें तो पता ही है कि मैं तुमसे बात करने में कितना झिझकता था . पता नहीं फिर जाने कैसे मैं बिजी हो गया और तुम भी खो- सी गई. कभी- कभी संपर्क करने की कोशिश करने की इच्छा भी हुई, पर किसी कारण से मिलना नहीं हो पाया. चार साल बाद बाद न जाने कहाँ से कोई तुम्हारे लिए रिश्ता ले कर आया और मैं तो ख़ुशी से झूम उठा. मैंने तुरंत हामी भर दी और हमारी शादी हो गई. इस शादी को कितने वर्ष हो गए. मधुरिमा, बच्चों के होने के बाद तो बस हम दोनों का एक मात्र उद्देश्य उनकी अच्छी परवरिश ही रह गया था. हमारे बीच तो बस बच्चों ओर घर की बातें ही होती रहीं , पास रहकर भी हम किसी न किसी उलझन में फँसे रहे और जीवन की आपा- धापी में अजनबी से बन गए. तुमने किस प्रकार मेरे साथ इतने वर्ष बिता दिए, कुछ पता ही नहीं चला. हर कदम पर तुम मेरे साथ खड़ी रही. कई बार ऐसे मौके आए जब तुमने मुझे सहारा दिया. आज जब तुमने कहा कि मैं तुम्हें पत्र लिखूँ तो मुझे समझ नहीं आया मैं कहाँ से शुरू करूँ . इतनी बातें, इतनी ढेर बातें जो एक पति-पत्नी में हो जाती हैं , कहाँ से इस पत्र में समेट दूँ ! बस मैं यही कहना चाहता हूँ कि तुमने सुख और दुख की घड़ियों में मेरा सुंदर साथ निभाया , जब जब मैं टूटा, तुमने मुझे सहारा दिया.हम दोनों ने परिवार को अच्छे से मिल कर बनाया . ईश्वर से यही प्रार्थना है कि हम यूँ ही मिलकर जीवन के बाकी वर्ष बिताएँ .
तुम्हारा,
मुकेश
मधुरिमा पत्र पढ़ते-पढ़ते रोने लगी. उसकी आँखों में खुशी के आँसू थे .मुकेश कभी मुँह से अपनी बात नहीं कहता था, लेकिन हर छोटी- बड़ी बातों में उसका प्यार झलक जाता था .आज सुबह ही वह मुकेश को यह काम बताकर आई थी और चाहती थी कि वह उसे पत्र लिखे.उसके काफी ज़िद करने पर मुकेश ने उसे यह पहला पत्र लिखा था.
तभी मुकेश भी उसके पास आकर बैठ गया और उसने प्यार से मधुरिमा को अपने पास खींच लिया। उसके स्पर्श का यह अहसास ही मधुरिमा को बीते वर्षों की सुखद याद दिलाने के लिए काफी था.
उषा छाबड़ा
२४.२.१६
Comments
it is very very very very nice